कॉप-26: कार्बन बजट और उत्सर्जन के इन सवालों पर हो बात

जलवायु परिवर्तन स्वाभाविक है और हमें पता है कि यह निश्चित है. जलवायु वैज्ञानिकों ने आने वाले समय में प्रलय के बारे में हमें पहले से बता रखा है. संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष जलवायु-विज्ञान शाखा, जलवायु-परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने भी अपनी ताजा छठी आकलन रिपोर्ट (एआर 6) - ‘क्लाईमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस ’ में इसकी पुष्टि की है.

यह वही सच है जिसे हम जानते हैं, और अपने आसपास की दुनिया में देखते हैं. उदाहरण के लिए- अत्यधिक गर्मी और नमी के नुकसान से शुरू हुई जंगल की आग, अत्यधिक बारिश की घटनाओं के कारण विनाशकारी बाढ़, और समुद्र व भूमि की सतह के बीच बदलते उष्णकटिबंधीय चक्रवात. रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि निश्चित ही इन घटनाओं के लिए इंसान की आदतों को ही दोषी ठहराया जाएगा.

मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसों ने हमारे ग्रह को इसकी सहनशीलता के स्तर से ज्यादा गर्म कर दिया है. संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन के हवाई स्थित मौना लोआ वायुमंडलीय बेसलाइन वेधशाला के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल मई में, वायुमंडलीय कॉर्बन डाइऑक्साइड का स्तर 419 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) तक पहुंच गया था. यह जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा स्वीकार किए गए 1750 में 278 पीपीएम के पूर्व-औद्योगिक आधार रेखा से लगभग 45 फीसद ज्यादा है.

उससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि दुनिया के पास इस कार्बन से निपटने के लिए अब न तो जगह है और न समय. फिलहाल हम हर साल 36.4 गीगाटन कॉर्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं. आईपीसीसी का कहना है कि हमें धरती की प्रसंस्करण क्षमताओं के आधार पर अपने कार्बन उत्सर्जन का बजट बनाने की जरूरत है ताकि औसत वैश्विक तापमान वृद्धि, पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर न होने पाए. यही वह सीमा-रेखा है, जिससे हम अपनी दुनिया को जलवायु परिवर्तन की विनाशकारी घटनाओं से बचा सकते हैं.

2018 के आकड़ों के मुताबिक, 2030 तक दुनिया को 2010 के स्तर पर बनाए रखने के लिए उत्सर्जन में 45 से 50 फीसदी कटौती की और 2050 तक उत्सर्जन शून्य करने की जरूरत है. यानी केवल वही उत्सर्जन करना है, जो जंगलों और समुद्रों जैसे प्राकृतिक स्रोतों द्वारा सोंका जा सके या फिर जिसे कॉर्बन कैपचर और स्टोरेज जैसी तकनीकों से साफ किया जा सके.

आईपीसीसी की ताजा छठी आकलन रिपोर्ट यानी एआर 6 की मानें तो दुनिया के पास आने वाले सम्पूर्ण भविष्य के लिए 400 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड का बजट है. इसका मतलब यह है कि एक बार जब हम इस सीमा को पार कर जाएंगे (भले ही जब भी करें), तो तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी का खतरा हमारे ठीक सामने होगा.

वैज्ञानिकों द्वारा मिल रही इस तरह की सारी जानकारियों से हमें डर लगना चाहिए और फिर वास्तविक और सार्थक कार्रवाई के लिए तैयार होना चाहिए. लेकिन इसके बजाय दुनिया खंडों और देशों में बंट रही है और वैज्ञानिक इस पर बहस कर रहे हैं कि जलवायु -परिवर्तन के सवाल पर किस तरह की राजनीति की जा रही है और कौन कितना कार्बन उत्सर्जित कर रहा है. इन सबके अलावा कार्बन बजट को लेकर पूरी दुनिया में बड़ी अनिश्चितताएं तो हैं ही.

तीन कारण हैं, जो कार्बन बजट की इस प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं- पहला कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों की उम्र असामान्य तौर पर लंबी होती है. कहा जाता है कि जो कार्बन डाइऑक्साइड सन 1900 में उत्सर्जित की गई थी, वह आज भी वातावरण में है. ऐतिहासिक उत्सर्जक भी धरती को उसी तरह गरम करने में अपनी भूमिका निभाते हैं जैसे वर्तमान उत्सर्जक.

दूसरा, ये प्रदूषक आर्थिक वृद्धि से जुड़े हुए हैं. कॉर्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन में बड़ा हिस्सा जीवाश्म ईंधन के जलने से होता है, जिसका उपयोग बिजली, परिवहन, सामान और हमारे घरों और कारखानों को बिजली देने के लिए किया जाता है. इसलिए, जब दुनिया जलवायु परिवर्तन पर चर्चा कर रही होती है, तो यह दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी चर्चा होती है, केवल धरती की पारिस्थितिकी की नहीं.

तीसरा और आखिरी कारण यह कि चूंकि ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में बनी रहती हैं और उत्सर्जन दुनिया के देशों में पूंजी निर्माण से जुड़ा है, इसलिए जलवायु परिवर्तन की लड़ाई, देशों के बीच वृद्धि के बंटवारे की लड़ाई है. इसका मतलब है- कार्बन बजट की साझेदारी.

एक बेहद असमान दुनिया में, यह सबसे असुविधाजनक वास्तविकता है, खासकर तब, जब हम समानता और जलवायु न्याय के मुद्दों को ध्यान में रखते हैं. जलवायु परिवर्तन का विज्ञान और राजनीति इस कदर प्रभावित है कि इन्हें अलग नहीं किया जा सकता.

इसलिए, हम नीचेे दिए गए बिंदुओं का मतलब समझने का प्रयास करते हैं.

- तब और अब: सदियों से बड़े उत्सर्जक कौन रहे हैं, और आज वे कहां खड़े हैं? प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में कौन कहां खड़ा है और किन देशों को विकसित होने के लिए कार्बन बजट के बड़े हिस्से की आवश्यकता है?

- राष्ट्रीय लक्ष्य: राष्ट्रीय निर्धारित योगदान यानी एनडीसी के लिए किस तरह की वक्र रेखा तैयार होगी ? स्वैच्छिक राष्ट्रीय लक्ष्य, 2015 पेरिस समझौते के हिस्से हमें किस ओर ले जाएंगे? किन देशों ने अपने लिए कठिन और किन देशों ने आसान लक्ष्य तय किए हैं?

- कॉर्बन बजट: दुनिया को 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बनाए रखने के लिए कॉर्बन बजट कितना है? किस देश ने कितना बजट तय किया है?

- 2030 का लक्ष्य: आगे बढ़ते हुए, 2020-30 में किन देशों के कार्बन बजट को हथिया लेने की संभावना है?

(साभार - डाउन टू अर्थ)

Also Read: कॉप-26: यह वक्त बर्बाद करने का नहीं बल्कि साहस, कल्पना और सहयोग का है

Also Read: जलवायु परिवर्तन: दुनियाभर में 180 करोड़ लोगों पर खतरे की आशंका



source https://hindi.newslaundry.com/2021/10/30/cop-26-carbon-budget-and-emission-environment

Comments

Popular posts from this blog

Sushant Rajput case to Zubair arrest: The rise and rise of cop KPS Malhotra

प्राइम टाइम पर हिंदू राष्ट्र की चर्चा: सीएनएन न्यूज़-18 पर पुरी शंकराचार्य का इंटरव्यू

Unravelling the friction between CPIM and Kerala’s major media houses