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Showing posts from December, 2021

A year in news reports: Nidhi Suresh and Basant Kumar on Newslaundry’s biggest stories of 2021

In a year marked by protests and the pandemic, two Newslaundry correspondents – Nidhi Suresh and Basant Kumar – navigate our biggest stories of 2021, and what they learned in the process. 2021 picked up where 2020 left off: with the farmer protests leading up to January’s violence at Red Fort. “It was also during the farmer protests that we realised the importance of the media beat,” says Nidhi. “The media became a part of the protest; the anger against the media had become so obvious.” They discuss the subsequent arrest of farmers in February, and the assembly election coverage through the NL Sena project in March. April brought the second wave of the pandemic. Basant talks about the series of ground reports he did with Ayush from Uttar Pradesh, the emotional turmoil of reporting from the ground during that time, and the establishment’s apathy towards the crisis. “When the UP government makes a claim that nobody died of an oxygen shortage,” he says, “our stories stand as a test

संतों की बयानबाजी पर क्या कहते हैं खुद को "धर्म संसद" से अलग करने वाले महंत रामसुंदर दास

हरिद्वार में 17 से 19 दिसंबर के बीच चली धर्म संसद से साधू- संतों द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण और अपमानजनक ब्यान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. हरिद्वार के अलावा छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी धर्म संसद का आयोजन किया गया था. धर्म संसद के दौरान कालीचरण महाराज ने महात्मा गांधी के खिलाफ आपत्तिजनक ब्यान दिया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी जमकर आलोचना हुई. इसी धर्म संसद के दौरान वहां मौजूद महंत रामसुंदर दास ने कालीचरण महाराज के अपशब्दों पर नाराजगी जताई और खुद को धर्म संसद से अलग करने की घोषणा की. फिलहाल कालीचरण को गिरफ्तार कर लिया गया है. इस पूरे मामले पर न्यूज़लॉन्ड्री ने महंत रामसुंदर दास से विस्तार से बात की है. राम सुंदर दास कांग्रेस के पूर्व विधायक और वर्तमान में वह छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष भी हैं. Also Read: हरिद्वार धर्म संसद: क्यों उत्तराखंड पुलिस की जांच का किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना तय है Also Read: छत्तीसगढ़: धर्म-संसद के आयोजकों में शामिल थे कांग्रेस के नेता! source https://hindi.newslaundry.com/2021/12/31/dharm-sansad-raipur-ram-sundar-das-kalicharan-maharaj-mahatma-gand

Slow down, pause, go: Celebrating the New Year in times of a pandemic

Threats, even if real, can overstay their dread, long enough to be seen as tiring rather than deadly. As the year ends with the spread of the Omicron variant of Covid-19, the feeling of a “ boring apocalypse ” is inescapable. It shouldn’t come as a surprise that most Indians, despite having not-so-distant memories of a massive and rampaging second wave earlier this year, are more likely to respond with fatigue rather than fear. The year-long cycle of “slow down, pause, go” has brought a crippling sense of intermittence to how Indians worked, earned, studied and even socialised in 2021. Following up as the second successive annus horribilis in the country is an ignoble feat as much as it leaves notes of a detached exhaustion. If the last year began with the jittery optimism about vaccines or the force of time restoring normalcy, this year ends by saying the wait could be longer. A lot got done, half-done or caught in between. In the midst of these false and uncertain halts was the l

'पक्ष'कारिता: रोहिणी नक्षत्र में मुफ़लिसी के मारे हिंदीवालों का 'अचूक संघर्ष'

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जाता हुआ साल जाने क्‍यों शायराना सा मालूम देता है. बहुत कोशिश कर के भी पीछे नज़र ही नहीं जाती. गोया लिखी हुई इबारत को जाने कौन माज़ी बना गया. यह साल, बड़े से बड़े काफि़र को नमाज़ी बना गया. जिसे देखो उसको बेगानी शादी में काज़ी बना गया. और जाते-जाते इलाहाबादियों को प्रयागराजी बना गया. मौका है और दस्‍तूर भी, तो शुरुआत अज़ीम शायर अकबर इलाहाबादी से ही कर लेते हैं. ले ले के क़लम के लोग भाले निकले / हर सम्त से बीसियों रिसाले निकले अफ़्सोस कि मुफ़़लिसी ने छापा मारा / आख़िर अहबाब के दिवाले निकले वाकई, मुफ़लिसी बहुत बुरी चीज़ है. तोप का मुकाबला करने के लिए लोग अखबार तो निकाल लेते हैं लेकिन अगले दिन गाड़ी में तेल नहीं भरवा पाते. नतीजा? अगली रात कई घरों में चूल्‍हे नहीं जल पाते. अब कायदा तो ये होता कि जाड़े की हर शाम पहले कॉनियेक का इंतज़ाम जुटता, उसके बाद अदब और सियासत पर फ़तवे दिए जाते. अव्‍वल तो इलाकाई पत्रकारों को दिल्लीवासी पत्रकारों से पत्रकारिता का सबक लेना चाहिए- पहले सामान जुटाओ, फिर अखबार निकालो! पर सबक भी क्‍या लेंगे बेचारे, जब देश भर के अखबारों और पत्रकारों को इन लोगों ने पहले ही खत

एनएल सारांश: बेअदबी के मामले, इससे जुड़ा कानून और नेताओं की चुप्पी

हाल के दिनों में पंजाब में गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामले बढ़े हैं. एक के बाद एक तीन मामलों ने दुनियाभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. लोग इन बेअदबी के मामलों को राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं क्योंकि आने वाले कुछ महीनों में पंजाब समेत देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. इस बार के एनएल सारांश में हम बात करेंगे बेअदबी की घटनाओं पर, जानेंगे कि बेअदबी क्या है और भारत में इसको लेकर क्या कानून है साथ ही दूसरे देशों में ईशनिंदा को लेकर किस तरह के कानून हैं. देखिए यहां पूरा वीडियो . Also Read: सिंघु बॉर्डर के चश्मदीद: 'अगर मैं लखबीर को बचाता तो निहंग मुझे भी मार देते' Also Read: डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व कांन्फ्रेंस का हिंदू संगठनों ने क्यों किया विरोध? source https://hindi.newslaundry.com/2021/12/31/nl-saransh-sikh-cases-of-sacrilege-law-related-and-silence-of-the-leaders

Looking back at 2021, journalists list out the highs, lows and reasons for optimism for Indian media

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It was a packed year for the Indian media, but different sections of the media chose to divide focus between different events that punctuated the news cycle, some more than others. The year 2021 saw an unrelenting second wave of the pandemic that claimed countless lives, recorded and unrecorded, and ended with the farmer protests culminating in the Narendra Modi government’s U-turn on its three farm laws. It saw the phrase “Bollywood drug gang” come back into the media lexicon, while the annual string of avoidable and unavoidable natural calamities happened one after the other. Newslaundry decided to know from journalists themselves, what they felt the year was like, for Indian journalism. We asked them three questions: What was, in their opinion, the lowest point for Indian journalism in 2021, the highest, and what they hope Indian journalism gets right in 2022. Here’s what they said. Ravish Kumar, senior executive editor, NDTV Indian media is now found only at its lowest poin

RedInk awards: Here’s who won and why

Media professionals have been awarded under 12 major categories at the annual RedInk Awards for Excellence in Journalism, held by the Mumbai Press Club on Wednesday. With 2021 coming to an end, Newslaundry takes a look at the winners and their work. Photojournalist Danish Siddiqui, who was killed in Afghanistan while he was reporting earlier this year, was posthumously honoured as the ‘journalist of the year’. The award was received by his wife Frederike Siddiqui. In the business and economy print category, Varsha Torgalkar won for her report for Stories Asia titled, ‘The Child Labour Behind the Jeans You Wear’. In the television section, ABP News journalist Mrityunjay Singh won for his ground report on how grape farmers from Nashik were suffering during the Covid-induced lockdown. BBC Marathi journalist Shrikant Fakirba Bangale won under the women empowerment and gender equality television category for his report on farmer Jyoti Deshmukh, who cultivated 29 acres of land aft

142 वर्षों के इतिहास में चौथा सबसे गर्म नवंबर

पिछले 142 वर्षों के इतिहास में यह चौथा मौका है जब नवंबर के महीने का तापमान सर्वाधिक उच्च दर्ज किया गया है. यह जानकारी हाल ही में एनओएए के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है. रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष नवंबर का औसत तापमान सामान्य से करीब 0.91 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है. तापमान में होती वृद्धि की यह गणना 20वीं सदी में नवंबर के औसत तापमान के आधार पर की गई है, जोकि 12.9 डिग्री सेल्सियस है. गौरतलब है कि दुनिया के 10 सबसे ज्यादा गर्म नवंबर के महीने 2004 के बाद ही दर्ज किए गए हैं, जिससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि हमारी धरती का तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है. यदि इतिहास में सबसे गर्म नवंबर के महीनों की बात करें तो 2015 में नवंबर का तापमान रिकॉर्ड गर्म था, जब तापमान सामान्य से 1.01 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था. इसके बाद नवंबर 2020 में तापमान सामान्य से 0.96 डिग्री सेल्सियस और नवंबर 2019 में तापमान 0.92 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. इससे पहले अक्टूबर का महीना भी इतिहास का चौथा सबसे गर्म अक्टूबर था. जब तापमान

एबीपी न्यूज़, ज़ी न्यूज़, एनबीटी: जितनी मीडिया उतनी कहानी

अभी तक आपने एक ही खबर को अलग-अलग मीडिया संस्थानों में पढ़ा, सुना और देखा होगा. कई बार हर संस्थान की खबर लगभग एक सी होती है. लेकिन इस बार एक ही वीडियो को अलग-अलग चैनलों ने अलग-अलग जगह का बता कर प्रसारित किया. एक बाघिन अपने तीन शावकों के साथ जंगल में विचरण करते हुए दिखाई दे रही है. यह वीडियो आप ने कई बार अलग-अलग टीवी चैनलों और यूट्यूब पर देखा होगा. यह वीडियो एक बार फिर से चर्चा में है. छत्तीसगढ़ के इंद्रावती टाइगर रिजर्व का एक फोटो रायपुर के अखबारों में छपा है. छत्तीसगढ़ खबर वेबसाइट के मुताबिक, यह फोटो पुरानी है जो अखबारों में फिर से छपा है. स्थानीय अखबारों ने बाघिन और उसे शावकों को बस्तर का बताया है. यह पहली बार नहीं है जब यह फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं. इससे पहले कई नेशनल टीवी चैनलों पर इसे अलग-अलग राज्यों का बताया जा चुका है. रायपुर के अख़बारों ने 28 दिसंबर को इसे बस्तर का बताया. 16 दिसंबर 2021 को @ZeeNews ने इसे भोपाल का बताया. 11 दिसंबर 2021 को @ABPNews और @NavbharatTimes ने इसे उ.प्र. के सोनभद्र का बताया. 25 मार्च 2021 को एक यू ट्यूब चैनल ने इसे उत्तराखंड का बता

A dupe of a year: How a section of Big Media conned readers with advertorials

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Take a look at this: If you mistook this advertorial for a news report, don’t beat yourself up for not noticing the tiny markers that identify this page as a marketing initiative. Dainik Jagran went to a fair amount of trouble to make sure readers make that very mistake. After all, the whole point of an advertorial is to fool the reader into thinking an advertisement is a legitimate news story. Even to those of us who are accustomed to seeing “paid news”, 2021 saw an unprecedented blurring of the line between editorial and advertising – mostly because of the upcoming assembly elections in Uttar Pradesh and Uttarakhand. The dates for the election are yet to be announced, but from the profusion of advertorials that have already appeared in newspapers and magazines, it’s clear that the momentum of informal campaigning has gathered strength. The advertorial – ads that are camouflaged to match the editorial content on a page – is hardly a new feature. It’ll turn 50 years old in 2022. C

‘Cough syrup deaths’: Why did children fall sick, even die, after taking dextromethorphan?

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On December 23, the National Commission for the Protection of Child Rights issued a notice to the Delhi government. The commission highlighted that 16 children had fallen sick after consuming dextromethorphan, a cough suppressant. The children were all aged between one and six. Three children died in September and October. “...ensure to stop the usage of syrup Dextromethorphan and also ensure that no syrup of this batch is left at any of the dispensing units,” the commission said, and “send a factual action taken report regarding the action taken against respective officers, doctors and pharma company along with all the relevant documents to the Commission within 15 days.” The matter first came to light through a letter dated December 7, stating that the children "were prescribed the dextromethorphan drug by mohalla clinics of Delhi government and the drug is strictly not recommended for paediatric age children". The letter flagging the 'poisoning' due to dextro

Sansad Watch Ep 22: Why linking Aadhaar to voter ID is a terrible idea

The winter session came to an end last week with the government bulldozing the Election Laws (Amendment) Bill, which enables the linking of Aadhaar to voter IDs to cleanse electoral rolls of duplication. But will it work or become another disaster? Watch. References The Election Laws (Amendment) Bill, 2021 Also Read: Sansad Watch Ep 21: Does the new data protection law fit the bill? Also Read: NL Interview: Priyanka Chaturvedi on her Rajya Sabha suspension and what the opposition needs to do source https://www.newslaundry.com/2021/12/28/sansad-watch-ep-22-why-linking-aadhaar-to-voter-id-is-a-terrible-idea

The Super and Snoozy Seven: Presenting the best, and worst, of Tamil cinema in 2021

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Well! 2021 was officially a very dramatic year for all of us. Earlier this year, just when the public was warming up to the idea of returning to cinema halls, the second wave of Covid brought those plans to a halt. While cinema halls eventually reopened after four months of closure, it was only around October the crowds got back to theatres in full swing. There is no doubt that making films in such a volatile and vulnerable period is itself an act of courage. And one might want to applaud all of them for just doing what they did. But then, such generic niceness wouldn’t give us an idea of what the interesting and not-so-interesting phenomena of the year were. So, let’s take a closer look at this year’s releases, and see who and what surprised us – and who and what put us to sleep. Counting down, from #7 to #1. First, the Super Seven. #7 - The Restraint of the Star The delightful thing about the films Master and Doctor were how actors Vijay and Sivakarthikeyan allowed themselves